• जीविका का महिला सशक्तिकरण में उत्कृष्ट योगदान
• डीपीएम जीविका ,जिला व राज्य स्तर पर सम्मानित

दरभंगा, महिला सशक्तिकरण एक विचार नहीं,बल्कि एक क्रांति है,इस परिवर्तन की अग्रदूत बनी डॉ.ऋचा गार्गी,जिन्होंने ग्रामीण बिहार की महिलाओं को नई ऊर्जा और दिशा दे रही है।
• जीविका की जिला परियोजना प्रबंधक (डीपीएम) के रूप में उन्होंने समाज के सबसे कमजोर वर्ग की महिलाओं को संगठित कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का कार्य किया है।
• उनके अथक प्रयासों से आज हजारों महिलाएँ न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं,बल्कि अपने परिवारों और समाज में भी एक नई पहचान बना रही हैं।
डॉ.ऋचा गार्गी का मानना है कि सशक्त महिला ही सशक्त समाज की नींव रख सकती है।
उन्होंने नारी सशक्तिकरण की अवधारणा को व्यवहारिक रूप देकर बिहार के ग्रामीण इलाकों में हजारों महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने का कार्य किया।
बिहार सरकार ने आर्थिक रूप से जीविका के माध्यमसे महिलाओं का आत्मनिर्भर बनाया और उन्हे स्वयं सहायता समूहों (SHG) को मजबूत किया और ग्रामीण महिलाओं को वित्तीय योजनाओं और सरकारी सहायता से जोड़ा। इससे जीविका समूहों का विस्तार हुआ,जिससे लाखों महिलाएँ संगठित होकर अपनी आजीविका सुधारने में सक्षम हुईं।
• उन्होंने महिलाओं को सामूहिक व्यवसायों,सिलाई,मास्क निर्माण,मधुमक्खी पालन,मुर्गी पालन,बकरी पालन,जैविक खेती और अन्य स्वरोजगार गतिविधियों से जोड़ने का कार्य किया।
इस योगदान के लिए ग्रामीण विकास विभाग के तत्कालीन सचिव अरविंद कुमार चौधरी ने पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया।
डॉ.ऋचा गार्गी का योगदान सिर्फ आर्थिक सशक्तिकरण तक सीमित नहीं रहा,बल्कि उन्होंने सामाजिक सुधार की दिशा में भी महत्वपूर्ण कार्य किए।
• उन्होंने महिलाओं को वोटर कार्ड,राशन कार्ड,आधार कार्ड, और अन्य सरकारी दस्तावेजों के लिए जागरूक किया और उन्हें बनवाने में मदद की।
उनके प्रयासों से हजारों गांव खुले में शौच से मुक्त हुए और महिलाओं ने शौचालय निर्माण को अपनी प्राथमिकता बनाया।
उन्होंने महिलाओं को स्वच्छता और स्वास्थ्य से संबंधित जागरूकता दी और सैनिटरी पैड के उपयोग को प्रोत्साहित किया। इसके अलावा,उन्होंने मतदाता जागरूकता अभियान, शराबबंदी आंदोलन और घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं को जागरूक करने का कार्य किया। उनके इस सामाजिक योगदान को जीविका के पूर्व सीईओ बालामुरुगन डी. ने भी सम्मानित किया।
डॉ. ऋचा गार्गी की दूरदृष्टि और नवाचार की भावना का ही परिणाम है कि बिहार में पहली बार डीएमसीएच (दरभंगा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल) में ‘दीदी की रसोई’ की शुरुआत हुई।
• आज जिले में दीदी की रसोई सफलतापूर्वक संचालित हो रही हैं,जिससे कई महिलाओं को स्थायी रोजगार मिला है। इसके अलावा,अस्पतालों और अन्य संस्थानों में सफाई कार्यों की जिम्मेदारी भी जीविका समूहों को दी गई,जिससे महिलाओं की आय में वृद्धि हुई।
डॉ.ऋचा गार्गी का मुख्य फोकस महिलाओं को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनाना रहा है। उनके नेतृत्व में दरभंगा जिले के चार प्रखंडों में 40,000 से अधिक स्वयं सहायता समूह (SHG) सक्रिय हैं,जिनसे लगभग 05 लाख महिलाएँ जुड़ी हुई हैं।
साथ ही इन समूहों के माध्यम से महिलाएँ न केवल बैंकिंग सेवाओं से जुड़ रही हैं,बल्कि छोटे-छोटे ऋण लेकर अपने व्यवसाय को भी आगे बढ़ा रही हैं।
उन्होंने महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं को प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY), स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, और बिहार सरकार की अन्य योजनाओं से जोड़ा,जिससे महिलाओं को व्यवसाय शुरू करने के लिए आसानी से ऋण प्राप्त हुआ।
• उन्होंने आधुनिक कृषि तकनीकों,जैविक खेती,मधुमक्खी पालन,बकरी पालन,मुर्गी पालन और मछली पालन की ट्रेनिंग मुहैया करवाकर हजारों महिलाओं को इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाया।
• साथ ही इसके अलावा,उन्होंने महिलाओं को सिलाई,कढ़ाई,बुनाई,अगरबत्ती निर्माण,हस्तशिल्प,जूट बैग निर्माण और अन्य पारंपरिक और गैर-पारंपरिक व्यवसायों से जोड़कर उनकी आजीविका को सशक्त किया।
महिला दिवस के अवसर पर डॉ.ऋचा गार्गी जैसी प्रेरणादायक महिलाओं का योगदान हमें यह सिखाता है कि सही मार्गदर्शन,सहयोग और आत्मविश्वास से महिलाएँ किसी भी कठिनाई को पार कर सकती हैं।
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