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दरभंगा मिथिला विश्वविद्यालय परिवार ने डा अंबेडकर की पुण्यतिथि के अवसर पर उनकी आदमकद प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर दी श्रद्धांजलि

मिथिला विश्वविद्यालय परिवार ने डा अंबेडकर की पुण्यतिथि के अवसर पर उनकी आदमकद प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर दी श्रद्धांजलि

राष्ट्र-निर्माता डा अंबेडकर सिर्फ दलितों के ही नहीं, बल्कि सभी पिछड़ों, महिलाओं, किसानों व मजदूरों के उत्थान की कि थी बात- प्रति कुलपति

डॉ अंबेडकर का जीवनदर्शन प्रकाशपुंज सदृश्य जो सदियों तक आने वाली पीढ़ियों को भी आगे बढ़ने तथा समाज को नई दिशा देने की देगा प्रेरणा- कुलसचिव

राष्ट्रीय सेवा योजना कोषांग के तत्वावधान में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय परिवार की ओर से भारतरत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि के अवसर पर प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉली सिन्हा की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय परिसर स्थित उनकी आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण के उपरांत श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया, जिसमें वित्तीय परामर्शी कैलाश राम, कुलसचिव प्रो मुश्ताक अहमद, प्रो ए के बच्चन, प्रो शाहिद हसन, प्रो मंजू राय, प्रो रमेश झा, प्रो मंजू मिश्रा, डा नैयर आजम, प्रो विजय कुमार यादव, प्रो राजेन्द्र साह, प्रो दमन कुमार झा, प्रो अरुण कुमार सिंह, प्रो अशोक कुमार मेहता, प्रो सुरेन्द्र कुमार, डा घनश्याम महतो, डा आनंद मोहन मिश्र, डा मो जिया हैदर, डा अयाज अहमद, डा आर एन चौरसिया, डा विनोद बैठा, डा दिव्या रानी हंसदा, अमृत कुमार झा आदि सहित अनेक शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मी, छात्र- छात्राएं तथा विद्यालयों के बच्चे- बच्चियां उपस्थित थे।
अपने संबोधन में प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉली सिन्हा ने कहा कि भारत के निर्माता डा भीमराव अंबेडकर के निधन के दिन आज हम सभी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर उनके कार्यों को याद कर रहे हैं। हम जानते हैं कि उनके समय में देश और समाज की स्थिति कैसी थी? तब भारत एक अति गरीब देश था, फिर भी उन्होंने अपनी मेहनत, लगन तथा बड़ौदा- महाराज से प्राप्त छात्रवृत्ति के बल पर अमेरिका एवं इंग्लैंड में पढ़ाई कर सफलताएं प्राप्त की। वहां भी उनकी मेधा एवं मेहनत देखी गई। राष्ट्रनिर्माता डॉ आंबेडकर सिर्फ दलितों के ही नहीं, बल्कि पिछड़ों, महिलाओं, किसानों व मजदूरों सहित हाशिए पर रहने वाले सभी व्यक्तियों के उत्थान की बात की थी। वे जीवन भर हमेशा संघर्षरत रहकर हमें शिक्षा दी कि मेहनत का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। कमजोर वर्ग के व्यक्ति भी उनसे जीवन जीने की कला सीख सकते हैं।आज भारत ही नहीं, पूरे विश्व के सभी पिछड़े लोग आर्थिक एवं सामाजिक सुधार के लिए इस महान व्यक्ति के कार्यों को याद कर नमन कर रहे हैं। वे जब तक जीवित रहे, तब तक शायद उन्हें उतना सम्मान नहीं मिल पाया, जितना आज मिल रहा है।
प्रति कुलपति ने कहा कि डा अंबेडकर विज्ञान तथा तकनीक में विश्वास करते थे। उनका मानना था कि अगर पिछड़ों को भी सुविधाएं मिल जाए तो वे भी आगे बढ़ सकते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने संविधान में भी इसकी व्यवस्था की।
विश्वविद्यालय के वित्तीय परामर्शी कैलाश राम ने कहा कि भारतरत्न बाबा साहब डा भीमराव अंबेडकर कम संसाधनों में भी पढ़ाई कर बेहतर काम किया। वे गरीबी के कारण लैंप पोस्ट के नीचे जाकर पढ़ते थे। उनका मानना था कि जो व्यक्ति खुद को आगे बढ़ाता है, वही देश को भी आगे ले जा सकता है।
कुलसचिव प्रोफेसर मुश्ताक अहमद ने कहा कि डॉ अंबेडकर का जीवन दर्शन प्रकाशपुंज सदृश्य है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में उनका विचार एवं संस्कार आज जीवित है। वंचितों को जो अधिकार उन्होंने दिया, उसके बदौलत वे अपना सहारा पा रहे हैं। उनका जीवन हमें सदा प्रेरणा देता है कि मनुष्य यदि चाहे तो ऊंची से ऊंची सीढ़ियों तक भी पहुंच सकता है, बशर्ते उनके अंदर लगन व आत्मबल हो। जन्म से कोई व्यक्ति बड़ा या छोटा नहीं होता, बल्कि अपने संस्कारों तथा आत्मशक्ति से दूसरों को भी प्रकाशित करता है।
कुलसचिव ने कहा कि बाबा साहब का जीवन ऐसा लेशन है जो सदियों तक आने वाली पीढ़ियों को न केवल अपने जीवन को आगे बढ़ने की, बल्कि पूरे समाज को नई दिशा देने की प्रेरणा देता रहेगा। विश्वविद्यालय में स्थापित डा भीमराव अंबेडकर की आदमकद प्रतिमा हम सबको प्रेरणा देता है कि यहां किसी के भी अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है। उनके जीवन से हमें शिक्षा मिलती है कि हमारे अंदर जो भी प्रतिभाएं हैं, वे किसी भी परिस्थिति में उभारी जा सकती हैं। आज उनके विचारों और दर्शनों को अपने जीवन में उतारने का है। मैं पूरे विश्वविद्यालय परिवार की ओर से उन्हें शत-शत नमन करता हूं।
उपस्थित सभी विभागाध्यक्षों, शिक्षकों, शिक्षकेतर कर्मियों तथा छात्र- छात्राओं ने डा अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित की। सहायक कुलसचिव प्रथम डा कामेश्वर पासवान के स्वागत एवं संचालन में आयोजित कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन एनएसएस- कोऑर्डिनेटर सह कार्यक्रम के संयोजक डा विनोद बैठा ने किया।

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