दरभंगा अनुष्ठान के नियम खरना आस्थाचलगामी भगवान सूर्य को अर्ध्य देने के साथ ही लोक आस्था
के इस महान पर्व का समापन हो जाएगा लेकिन इस बार कोरोना वायरस को लेकर लॉक डाउन है व्रती नदी एवं तालाब के घाट पर नहीं जाएंगे फल व पूजा सामग्री की खरीद में भी लोगों को काफी परेशानी हो रही है इसीलिए सभी श्रद्धालु अपने अपने घरों में ही 1 मीटर की दूरी को ध्यान में रखकर परिजनों के साथ ही पर्व मनाएंगे बताया जाता है कि लोक आस्था का महापर्व है छठ उड़ान में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ करा कर प्रियवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर शमशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वह सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वह षष्ठी कहलाती है। जब राम सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजा सूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया पूजा के लिए उन्होंने मूंग दल ऋषि को आमंत्रित किया मूंग दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़क कर पवित्र किया था जिसे सीता जी ने मूंग दल ऋषि के आश्रम में रहकर 6 दिन तक सूर्य देव भगवान की पूजा की थी एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी करण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। और वह रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्ध्य देते थे सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने आज भी छठ में अर्ध दान की यही परंपरा प्रचलित है।